आदाब. शोमा खूब हास्तिद? मन खुबम.
बड़े दिन बाद अच्छा, कुछ खास सुनने मिला. जनाब फैजल शाह, जिन्होंने आय.ए.एस. में पिछले साल अव्वल नंबर लाया उनके कुछ अलफ़ाज़ मै यहाँ आपके सामने पेशे-ए-ख़िदमत करना चाहूँगा. आप वैसे तो कश्मिरसे है और पेशेसे डॉक्टर है. लेकिन आपने उर्दू लिटरेचर लेकर आय.ए.एस. में टॉप किया. एक मुसलमान और एक कश्मीरी होना बिलकुल इसके आड़े नहीं आया. जहा काबिलीयत और जुनून है वहा मंज़र तक पहुँचाना सिर्फ कुछ अर्से का सवाल है इसकी आप एक मिसाल हो. आप अल्लामा इकबालके बड़े कायल हो. जिस लताफ़त से इक़बाल के सुखन आपके ज़हनसे निकलकर जमुरियापर बरस पड़ते है उसे देखकर तो हमारे रोंगटे खड़े हो गए.
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़ना’अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा तेरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
गए दिन के तन्हा था मैं अंजुमन में यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
हाज़िर है उनके हर्फ़ उनिके आवाज में जो आपमे गालिबन नार-ए-ज़ज्बात पैदा करेंगे –